Wednesday, 29 February 2012

औरत

" आखिर कब जागोगी " आखिर कब जागोगी, तुम्हे कोई जगाने नहीँ आएगा, उठ जाओ वरना ये युग भी बीत जाएगा । युगोँ युगो से क्योँ तुँ लुटती आई है, अरे तेरे बल पर ही तो विधाता ने स्रष्टि रचाई है ! जिसके बन्द पिँजरे का पक्षी बनती है, तेरे बल पर ही तो उसकी समाज मेँ गिनती है ! कब जानेगी, तुँ उसके सर का ताज है, ऐसा नही था कल वो जैसा आज है, जाए घर किसी के अपने भी शक जताते है, हमसफ़र तेरे बनने से गैर भी अपना बनाते है! फिर भी बाहर निकालने से क्यों वो डरता है, पता नही किस भय मे पल पल मरता है ! तेरे सपने क्या है कोई नही जान पाएगा, कितना ही कर लेना श्रेय कोइ और ले जाएगा ! दो शब्द प्रेम के सुनकर भावुक हो जाती है, यही कमजोरी है जिससे त्याग की शुरुआत हो जाती है ! फिर क्यो. नही बिन सहारे के हम उठ पाती है, क्यो सोच बैठती है भाग्य मे बनाना खिलाना चपाती है ! जिन पाच भाईयो का सम्मान किया , पर तेरे लिए क्यो नही कोई कुछ कर पाया , उस पल खुद पर जो गुजरी थी, क्या उस पीडा को कोई भर पाया ! तु तो उस समय मर भी नही सकती थी, महाभारत जो होनी थी ! पाडव बेचारे कर भी क्या सकते थे, जैसे ये तो कोइ अनहोनी थी ! छोड. महलो को जिसके कारण वनवास सहा, आखिर उसी को न तुम पर विश्वास रहा ! लेकर अग्निपरीक्षा प्रजा को विश्वास कराया, तेरी श्रद्वा का क्या होगा, जरा ख्याल न आया ! मै अकेली हू , कुछ कर नही सकती , एक आशा मे "सिह" ’से हाथ मिलाया है ! आज बताकर ही रहूगी राम, सीता और क्‌ष्ण, राधे के कारण, ही तो भगवान कहलाया है.... तो भगवान कहलाया है !! ---- बुटा सिह सिधु ----

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